क्या श्रद्धावान व्यक्ति जीवन मे कभी दुखी नहीं होता?
क्या श्रद्धावान व्यक्ति जीवन मे कभी दुखी नहीं होता? सुख और दुःख का इस बात से कोई भी अंतर नहीं पड़ता की कोई श्रद्धावान है या अश्रद्धालु, यह व्यक्ति के विचारों और कर्मों पर निर्भर होता है पूर्णतया।
बिना अंधरे के रौशनी, बिना भूख के रोटी और बिना दुःख के सुख का कोई भी मूल्य नहीं है, वो एक दुसरे के पूरक और अन्तरंग है, उनका सह अस्तित्व है एक के बगैर दुसरे का कोई वजूद नहीं हो सकता।
इसलिए इस बात को भूल जाइये बल्कि सत्य तो यह है की जितने बड़े सुखों की आकांक्षा रखेंगे उतने बड़ों दुखों से गुजरना पड़ेगा, आपने देखा होगा की जितना ऊंचा शिखर होता है उसके बाजू मे उतनी गहरी खाई होती है, अतः यह मूल बात समझ लीजिये सुख और दुःख के सम्बन्ध मे तो हर शंका और सवाल का जवाब मिल जायेगा आपको।
हाँ यदि आप सच्ची श्रद्धा ईश्वर मे रखते है और चेतनाशील तरीके से जीवन जीते है तो किसी भी परिस्थिति मे आप संतुलित रहेंगे और अनावश्यक प्रतिक्रिया नहीं करेंगे किसी भी व्यक्ति और घटना के प्रति।
इस सम्बन्ध मे दो लघु कथाएं सुनिए – १. एक वेदपाठी शिक्षक को एक व्यक्ति एक गौ दान स्वरुप दे गया, ब्राम्हण ने धन्यवाद और आशीर्वाद दिया कुछ समय के बाद शिष्य ने सूचना दी की वो व्यक्ति अपनी गौ वापिस ले गया, ब्राम्हण ने कहा अच्छी बात है उस व्यक्ति का धन्यवाद, अब गौ के गोबर उठाने और उसकी देखभाल की फिक्र नहीं करनी होगी।
यह एक संतुलित व्यक्ति का दृष्टिकोण और प्रतिक्रिया है, जीवन गतिमान है और यहाँ घटनाएँ घटती रहेगी प्रिय भी और अप्रिय भी, समझने वाली बात यह है आप किसी भी स्थिति मे क्या कर्म या प्रतिक्रिया करते है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की आप आस्तिक है या नास्तिक, श्रद्धा रखते है या नहीं।
भगवान बुद्ध एक गाँव से होकर गुजर रहे थे एक व्यक्ति जो उनसे द्वेष रखता था, उनके गाँव मे प्रवेश से लेकर उनके गाँव के बाहर निकलते तक उनका पीछा करता रहा, और उन्हें अशब्द कहता रहा, लेकिन बुद्ध उसकी ओर ध्यान दिए बगैर आगे बढ़ते रहे, जब वो गाँव की सीमा पर पहुच गए तो वो आदमी उनके सामने खड़ा हो गया और बोला तुम कैसे आदमी हो मै इतनी देर से तुम्हे भला बुरा कह रहा हूँ, तुम पर कोई भी फर्क नहीं पड़ रहा है?
भगवान बुद्ध ने शांत भाव से उस आदमी से कहा यदि मै तुम्हे कुछ दूं और तुम उसे ग्रहण न करो तो वो चीज़ किसके पास लौटेगी, उस व्यक्ति ने कहा आपके पास, बुद्ध ने प्रेम से कहा बिलकुल सही, तुम जो पुरे रास्ते मुझे जो भी देते रहे मैंने उसे स्वीकार नहीं किया, तो वो सब अब किसके पास लौटेगा, वो व्यक्ति शर्मिंदा होकर बोला जी मेरे पास ही रहेगा, तो बुद्ध ने कहा तुम्हारी प्रतिक्रिया के बगैर कोई भी तुम्हे सुखी या दुखी नहीं कर सकता, वो व्यक्ति बुद्ध के चरणों मे गिर गया और माफ़ी मांगी।
तो कहानी का सार यह है की आपकी मर्ज़ी के बगैर कोई भी आपको सुखी या दुखी नहीं कर सकता, आपकी अंतर्दृष्टि और चुनाव ही आपको सुख और दुःख की अवस्था मे ले जाता है।
आप समभाव से उसे देख्नेगे, समझेंगे और जो करने योग्य होगा वो करेंगे अन्यथा जो जैसा है उसे अनन्य भाव से स्वीकार करेंगे, सुख और दुःख हमारी करनी और हमारी सभी बातों और लोगों के प्रति प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है की उनका हम पर क्या अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
यह हर व्यक्ति की आतंरिक समझ, जीवन जीने के तरीके और स्वयम को और दूसरों को कष्टों से बचाने या कष्टों मे डालने की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।
एक सच्चा श्रद्धालु निश्चित तौर पर एक जागरूक और चेतन व्यक्ति होगा अतः उसका दृष्टिकोण और प्रतिक्रिया भिन्न होगी, आप संवेदनशील है तो आप सुख मे सुखी और दुःख मे दुखी अवश्य होंगे चाहे वो अपना हो या किसी और का, लेकिन आप अपना आत्म संतुलन किसी भी स्थिति मे नहीं खोएंगे, क्यूंकि आप विवेकपूर्ण तरीके से इसे देखेंगे की उसका कारण क्या है? और उससे कैसा प्रभाव उत्पन्न होगा या हो सकता है।
यह जीवन एक प्रयोगशाला है, अध्धयनशाला है और हम सब यहाँ विद्यार्थी या प्रशिक्षु, और सुख और दुःख हमारे प्रशिक्षक और गुरु, इनसे गुजर कर हम ज्यादा सार्थक, जागरूक, मज़बूत और तेजस्वी बनते है, यह जीवन का अभिन्न और अनिवार्य ढंग है कोई भी इससे बच नहीं सकता, आपकी समझ, विवेक और चेतना आपको हर बात का लाभ लेकर और बेहतर होने मे मदद करती है चाहे आप इश्वर को मानते हो या नहीं, आप को कोई भी इससे बचा नहीं सकता।
जीवन कार्य और कारण और कर्म के सिद्धांत और वैश्विक प्राकृतिक नियमों के अधीन चलता है, यदि आप चेतस हैं, विवेक पूर्ण और इन नियमों को समझते है तो आप अपने जीवन मे सुखों की वृद्धि और दुखों को न्यूनतम कर सकते है और उनसे भी उर्जा और अनुभव प्राप्त कर सकते है।
यही जीवन और इश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा है और इसका पालन करनेवाला सदैव हर हल मे खुश रहकर प्रगति कर सकता है चाहे उसे संसार के सारे सुख उपलब्ध हो या उसे कांटो की सेज पर जीना पड़ रहा हो, धन्यवाद।
यह प्रश्न मेरे ब्लॉग एवं Quora के प्रबुध्द पाठक द्वारा पूछा गया है