क्या इस्लाम वाकई खतरे में है?
Quora पर किसी प्रबुद्ध पाठक ने यह प्रश्न किया है
जी हाँ इस्लाम बहुत खतरे मे है, उन लोगो की वजह से नहीं जो इस्लाम के अनुयायी नहीं हैं, वरन उन लोगो की वजह से जो इस्लाम के नाम पर सारी धरती को नरक बनाये हुए हैं। यही लोग इस्लाम के वास्तविक दुश्मन हैं और रहेंगे सदा।
पिछले 1400 साल से, जिन्होंने मुहम्मद साहब का जीवन भर विरोध किया, उन्हें अपने ही जन्मस्थान से बरसों तक दूर रहने पर मजबूर किया और उनके परिवार का क़त्ल किया, और इस्लाम को दुनिया मे एक भद्दी गाली और सबसे कुरूप संगठन बना दिया है।
इन्ही लोगो ने पैगम्बर की सारी सीखो को विरूपित करके इसे अपनी कुरूप और कुत्सित महत्वाकांक्षा और विस्तार और लूट की चाह का उपकरण बनाकर और अपने लालच और सत्ता की भूख का बर्बर, क्रूर और अमानवीय दस्तावेज बना दिया है
इन लालची और असभ्य लोगों ने पूरी धरती को रक्तपात, लूट और बलात्कार और निर्मम हत्या मे डुबो दिया, इन्होने निर्दोष लोगो की हत्या की और तलवार की नोक पर इसे लोगो पर थोप दिया।
यह सब बातें इस्लाम के मानने वालों के लिए सबसे ज्यादा शर्म की बात है की वो इन सब बातों को देखकर, जानकर भी, पैगम्बर की सच्ची सीखों की हत्या और बलात्कार देखकर भी मौन है, और इन सब हरामकारी बातों का मुखर और मौन रूप से समर्थन कर रहे हैं।
सभी मुसलमानों द्वारा इनका मौन समर्थन और इन इस्लाम के हत्यारों की स्वीकृति मुसलमानों द्वारा किया जाने वाला गुनाहे अज़ीम है, इस बात को सभी इस्लाम परस्तों को समझना और दूर करना चाहिए।
वो इस्लाम के साथ साथ अपने लिए भी बेशुमार, बद्दुयाएं, नफरत और नापसंदगी सारी दुनिया मे मोल ले रहे हैं, इससे उनके लिए सारी दुनिया मे नफरत और अविश्वास बढ रहा है, और यह जब तक बढेगा जब तक इस्लाम के मानने वाले इन सब अमानवीय बातों, नफरत, गैर इस्लामी लोगो के खिलाफ की जाने वाली साजिशों, हत्याओं और तमाम बातों को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाते।
इस्लाम के हत्यारों के इस खतरनाक और अमानवीय कामों की मौन और मुखर स्वीकृति इस्लाम के माननेवालों और उनकी आने वाली नस्लों के लिए भी सिर्फ नफरत और दहशत पैदा करेंगे, और सारी दुनिया मे उनके लिए नफरत और अविश्वास और अस्वीकृति ही पैदा करते रहेंगे।
भारत एक मात्र ऐसा मुल्क है जहाँ मुसलमानों को सबसे ज्यादा सुरक्षा, आज़ादी और हक मिले हुए हैं, और वो इसका बेहद शातिराना दुरूपयोग कर रहे है यह आत्मघाती है और इससे उन्हें यहाँ पर भी नफरत और अविश्वास और असहयोग मिलेगा।
इसलिए सभी इस्लाम के माननेवालों के लिए यही उत्तम सलाह है की वो पैगम्बर के सच्चे इस्लाम का अनुकरण करे जो प्रेम, त्याग, सद्भावना और भाईचारा सिखाता है, दूसरों से नफरत और मुल्क से गद्दारी नहीं।
क्या इस्लाम की किताबे वही समझा रही है जो मुहम्मद साहब ने कहा था, जिन किताबों का हवाला दिया जाता है वो तो मुहम्मद साहिब के समय अस्तित्व मे ही नहीं थी, वो तो पढ़े लिखे थे नही, न ही उन्होंने कोई किताब लिखी या जो उनके साथ रहने वालों ने मुकम्मल की उसे पढ़ा या उसे सत्यापित किया, कोई सबूत नहीं की वर्तमान मे मौजूदा इस्लामी धार्मिक किताबें उस बात का बयां करती है जो मुहम्मद साहब ने उद्घाटित की थी?
हदीथ और शरिया आदि का कोई अस्तित्व उनके रहते नहीं था, उनके इंतकाल के बाद, उनके दुश्मनों और सत्ता और विस्तार के लालची लोगों ने इन्हें बाद मे कुत्सित उद्देश्य की पूर्ति और राजनितिक विस्तार और सत्ता के लालच मे तैयार किया है जो की निहायत शैतानी और अमानवीय बातों का समर्थन और दावा करती है, जिनके लिए कभी भी मुहामेद साहिब की स्व्विकृति नहीं थी, न वो ऐसी नीच और हकीर बातों को इस्लाम की सीखों मे जगह दे सकते थे।
आज सारी दुनिया मे सभी इस्लामिक देश एक दुसरे के खून के प्यासे हैं बेशुमार क़त्ल कर रहे है अपने ही मज़हब के लोगो का, उन्ही मे दर्जन भर भेद हैं और उंच नीच और भेदभाव हैं उनके बीच ही मार काट और नफरत का अंतहीन सिलसिला है और ऊपर तुर्रा यह की इस्लाम शांति का मज़हब है, किस तरह की शांति का मज़हब है।
जहाँ पर भी यह लोग है वहां खून, खराबा, लूट बलात्कार, अपने ही कौम के लोगो का और उनका जो इनकी बर्बर और नीच सोच और आदिम बर्बर व्यवस्था को नहीं स्वीकारते।
यह किस किस्म की तहजीब और शराफत है, जो लोग इस्लाम की वकालत करते हैं उन्हें इस्लाम के नाम पर होनेवाली इन तमाम बातों को रोकने और ख़तम करने के लिए आगे आना चाहिए, वरना यह नफरत और खुराफात का मज़हब रहेगा, शांति का नहीं।
यह जमीनी हकीकत है इस्लाम और उनके माननेवालों की भले ही वो इन सब बातों से इनकार करे और इस भयानक हकीक़त से मुंह फेर ले और आंखे बंद रखे लेकिन यह सच्चाई है।