हमे पश्चिम का अन्धानुकरण से क्या हानि है?
अंधानुकरण किसी का भी किया जाए, दुष्परिणाम ही पैदा करता है, जानना और सीखना सदैव मदद करता है चाहे किसी से भी हो, हर सभ्यता और संस्कृति की अपनी विशिष्टता होती है, उसका अपना स्वरूप और बनावट होती है, कुछ भी जो दूसरों के लिए सही हो या अपनाया गया हो जरूरी नहीं आपके लिए भी उसी तरह से काम करे।
आपको अपनी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक पृष्ठभूमि, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों और श्रेष्ठ और कल्याणकारी मूल्यों की कसौटी पर कसकर ही किसी बात को धारण करना चाहिए।
सर्वप्रथम यह जानना और समझना जरूरी है कि हम क्यों दूसरों का अनुसरण करना चाहते हैं? हमे ऐसा करने की क्या जरूरत है? इससे हमारी किन आंतरिक एवम् बाह्य आवश्कताओं की पूर्ति हो सकती है एवम् यह हमारे विकास और प्रगति में किस तरह से उपयोगी हो सकती है?
हम किस रूप और मात्रा में इसे अपना सकते हैं? क्या इससे हमारे श्रेष्ठ जीवन मूल्यों और कार्यकुशलता व जीवन स्तर में कोई सकारात्मक व कल्याणकारी प्रभाव और परिवर्तन उत्पन्न किए जा सकते है? या यह इन सब बातों के विपरीत प्रभाव उत्पन्न करेंगे?
हमे इन सब बातों का ध्यान रखते हुए किसी भी बात का अंगीकार या अस्वीकार करना चाहिए, यह एक चेतन प्रक्रिया होना चाहिए चाहे वो किसी भी देश या संस्कृति से संबंधित हो, अन्धानुकरण सदैव घातक और विनाशकारी ही सिद्ध होता है, चाहे वो किसी का भी किया जाये।
हमारी प्राचीन संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत के अलावा पश्चिम कोई और चीज हमारी संस्कृति से नहीं सीख सकता जो संपूर्ण विश्व में अनुपमेय और अतुलनीय है।
भारत और पश्चिम दोनो एक किस्म के अतिवाद से ग्रस्त रहे हैं, यहां छद्म और पलायनवादी, अव्यावहारिक आध्यात्म और धर्मों ने यहां के लोगों को अंधविश्वासी, अकर्मण्य, भाग्यवादी और कायर बना दिया है, लोग अपनी महानतम आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को भूलकर विनाशकारी, अविचारित भोगवादी और उच्चश्रृंखल जीवन शैली और मुल्यों को अपनाकर पतित और अविवेकी बन गए हैं।
1000 वर्षों की दासता और 75 वर्षों की इस्लामिक, क्रिश्चियनिटी और कम्युनिस्ट विचारधारा और हमारी संस्कृति को नष्ट और विरुपित करने के हमलावरों और इस देश के गद्दारों के सुनियोजित षड्यंत्र ने इस देश के लोगो को पश्चिमी विकासवाद और उपभोक्तावाद का ग़ुलाम बना दिया है जो विनाशकारी है।
हमे हमारी जड़ों और आध्यात्मिक विरासत को जड़ता और विषैले प्रभाव से मुक्त करके धर्म और विवेक संगत जीवन जीने की हमारी परंपरा और आध्यात्मिक विरासत को पुनः प्रतिष्ठित करना होगा ताकि हम हर बात को अपने विकास के लिए इस्तेमाल कर सके, तभी हम वास्तविक रूप से विकास और श्रेष्ठता की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
इसी प्रकार की दुर्घटना पश्चिम के साथ हुई उन्होंने भोग और विज्ञान को ही सबकुछ मान लिया, इसलिए वहां मानसिक और शारीरिक समस्याओं से 70% से अधिक आबादी ग्रस्त है, वहां 10 वर्ष तक के बच्चों को मनोरोग संबंधी दवाएं लेनी पड़ रही है।
वहां भी जीवन एक तरफ दौड़ रहा है और गहरा असंतुलन उनके जीवन में पैदा हो गया है इसलिए भारत का आध्यात्म और योग व अन्य प्राचीन उपासना पद्धतियां और सनातन धर्म की विचारधारा उन्हें अभूतपूर्व तरीके से आकर्षित और प्रभावित कर रही है, यह पश्चिम के लिए बेहद कल्याणकारी और सुखद है।
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है की अमेरिका जैसे देश में उनके भोजन का 33% से अधिक डस्ट बिन में चला जाता है, और इस देश में 40 करोड़ लोगों को एक समय का भोजन उपलब्ध नहीं है।
यह दोनो संस्कृतियों के लिए श्रेष्ठतम अवसर है कि वो अपने श्रेष्ठ का एक दूसरे के साथ आदान प्रदान कर सभी के जीवन में समृद्धि और चेतना का अनोखा, धर्म और वैज्ञानिकता का अनूठा सम्मिलन और संतुलन जीवन में स्थापित कर मनुष्यों के लिए स्थापित सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य मानव चेतना के महत्तम विकास की और गति कर सके और प्रत्येक व्यक्ति और समस्त विश्व के कल्याण की दिशा में अग्रसर हुआ जा सके।
यह अद्भुत समय है और उसका सर्वोत्तम उपयोग करना पूरब और पश्चिम और संपूर्ण विश्व के लिए जरूरी है, आज धरती पर चेतना शील ढंग से विज्ञान और टेक्नोलॉजी के उपयोग द्वारा धरती के सभी लोगो के जीवन में महत्तम कल्याण को उपलब्ध किया जा सकता है।
अतः हमें अंधानुकरण और मानसिक दिवालिएपन की जगह संतुलित जीवन जो चेतना और आंतरिक दृष्टि युक्त हो अपनाना चाहिए और अपना और अपने आसपास मौजूद सभी के सर्वांगीण विकास को प्राप्त करने की दिशा में प्रयास करने के लिए अग्रसर होना चाहिए।
पश्चिम के लोग भारतीय सनातन परंपरा, योग, ध्यान व अन्य साधना पद्धतियों को अपना रहे है, और अपने जीवन में सुख शांति और विकसित चेतना को प्राप्त कर रहे है, वो इस देश और संस्कृति की सबसे मूल्यवान धरोहर को सम्मानित, प्रतिष्ठित एवम् गौरवान्वित कर रहे है और स्वयं को धन्य कर रहे है।
चेतना का विकास ही मनुष्य के कल्याण की आधारशिला है वो इस परम सत्य को स्वीकार कर रहे हैं और जीवन के सर्वोत्तम विकास कि ओर अग्रसर हो रहे हैं, वो ऐसा जानकर, समझकर, श्रद्घा और भक्ति के साथ स्वीकार कर रहे है उनका निश्चित ही कल्याण हो रहा है।
और हम अपनी ही संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत, हमारे परम पुरुषों उनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान विज्ञान और शिक्षा की अवमानना, अस्वीकार और अवहेलना कर दूसरे देशों की पतनकारी अंधी भोगवादी जीवन शैली और दूषित मूल्यों को स्वीकार कर अपने ही जीवन और संस्कृति को दूषित और विषाक्त करके खुश हो रहे है, यह समय है अपनी जड़ों से वापिस जुड़ने का अपने घर लौटने का।
धन्यवाद।