हिन्दू धर्म को श्रेष्ठ वैज्ञानिक धर्म क्यों समझा जाता है?
मुझे पता नहीं कि हिन्दू धर्म के संबंध में लोगो की अवधारणा या सोच क्या है, लोग क्या जानते है, क्या समझते है, और क्या देखते है, और उसका आधार क्या है?
जहां तक मेरी अपनी समझ और दृष्टि है अपने देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के बारे में हमारे अवतारों, सिद्ध महामानवों, और मुक्त पुरुषों की दृष्टि, अभिव्यक्तियों और अनुभव की रोशनी में जिसका कुछ अंश यहां प्रस्तुत कर रहा हूं, आप इस संबंध में खोज कर सकते है और सत्य जान सकते हैं।
यह धरती और यहां की आध्यात्मिक परंपरा, खोज, प्रयोग और प्रश्न करने, सार्थक संवाद और चिंतन पर आधारित है, यहां कुछ भी बंधा बंधाया नहीं है, यहां पिछले हजारों वर्षों में हजारों सत्य के खोजियों, साधकों, और रहस्यवादियों ने जीवन के समस्त आयामों में अद्भुत खोज और प्रयोग किए है और उन अनुभवों और निष्कर्षों को अन्य सत्य के साधकों और खोजियों को हस्तांतरित किया है, और पुरानी खोजों और अनुभवों के साथ संयुक्त किया गया है।
यहां हर नई बात और सत्य आधारित अनुभव और निष्कर्ष को स्वीकार और अंगीकार किया है, यहां किसी को कुछ भी मानने के लिए बाध्य नहीं किया गया उन्हें पूरी स्वतंत्रता प्रदान की गई संदेह करने की, प्रश्न करने की, प्रयोग करने की, स्वयं जानने की और अपने निष्कर्ष और अनुभव को प्रकाशित करने की।
हमारे यहां यही विधान है पिछले हजारों वर्षों से जीवन के सभी संभव आयामों के लिए, यह पूर्णतया वैज्ञानिक और श्रेष्ठ विधि है जीवन के संबंध में सही व्यवहार करने के लिए, उसको उसकी समग्रता में जीने और जानने के लिए, इस परंपरा को सनातन परंपरा के रूप में पहचान और प्रतिष्ठा प्राप्त है।
हमारी संस्कृति में धर्म कोई पृथक बात या बाह्याचार नहीं है, हमारे जीवन का आधार और जीवन को उसकी प्रामाणिकता और समग्रता में जीने का तरीका है।
यहां जीवन को धर्म में इस तरह गूंथा गया है कि उसका कोई पृथक अस्तित्व ना रहे लेकिन 1000 वर्षों की गुलामी में और सांस्कृतिक प्रदूषण और अपनी जड़ों से टूटने के कारण इस देश के तथाकथित बुद्धिजीवी और आधुनिक लोग इससे अपरिचित हैं और दुराग्रही और अविवेकी और अंधे हो गए हैं।
आज विश्व के सभी विकसित राष्ट्रों रूस, अमेरिका, जर्मनी में व्यापक रूप से लोग सनातन परंपरा में दीक्षित होकर जीवन के सत्यो की खोज में अग्रसर और आनंदित हो रहे है।
यह राष्ट्र धरती पर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण खोजों और आविष्कारों का आधार बना है और आधुनिक विज्ञान के विकास का जनक प्रणेता और प्रदायक है, उन्होंने बहुत सारी खोजों में हमारे प्राचीन ज्ञान विज्ञान और संदर्भ ग्रंथ की मदद ली है।
हमारी संस्कृति और हमारे आध्यात्मिक मूल्य सारे विश्व के सभी धर्मों और सभ्यताओं का आधार रहे हैं पिछले हजारों वर्षों से इसके प्रमाण हजारों साल पुराने पुरातात्विक अवशेषों से सिद्ध हो चुका है, होते जा रहा है, हर दिन प्राप्त होनेवाली खोजों और जानकारी से।
चूंकि हमारे देश की भौगोलिक सीमा सिंधु नदी से लेकर दक्षिण में हिन्द महासागर तक विस्तारित रहा है, अतः यह प्रदेश सिंधु के अपभ्रंश हिन्दू के रूप में जाना जाता रहा है।
इसलिए यहां की संस्कृति और आध्यात्मिक प्रवाह हिंदुत्व के रूप में जाना जाता रहा है, यह सतत गतिशील, प्रगतिशील, निर्बाध और प्रयोगधर्मी है इसने सबकुछ आत्मसात किया है, जो कुछ भी इस धरती पर संभव हो सकता है, सोचा या कल्पना किया जा सकता है।
यह सर्वग्राही, सार्वभेाैमिक और सर्वव्यापी है, जीवन की तरह इस विराट ब्रम्हांड की तरह इसका कोई भी आदि या अंत नहीं, इसका पहला उदघोष और आविष्कार आदि योगी भगवान शिव ने किया था जिसकी धारा को अनवरत उनके प्रधान शिष्यों सप्तऋषियों ने संपूर्ण धरती पर वितरित और विकसित किया।
यह हमारे परम वैज्ञानिक साधकों, ऋषियों और मुक्त पुरुषों की परम चेतना से विभूषित और प्रमाणित, हजारों वर्षों के सतत अनुसंधान, प्रयोग और रूपांतरण का परिणाम है।
जो निरंतर प्रयोग वादी, अनुसंधान और सत्य की खोज का अविरल विज्ञान है और शायद इससे बहुत ज्यादा अधिक हैं जिसे सामान्य तर्क और बुद्धि द्वारा पूरी तरह से जाना और समझा नहीं जा सकता, इसके लिए विशिष्ट बुद्धि और प्रज्ञा और समर्पित हृदय और बुद्धि और आत्मज्ञान को उपलब्ध गुरु की कृपा और संगत में पूरी तरह से जाना और अनुभव किया जा सकता है।
हमारी सनातन परंपरा का आधार मानना नहीं जानना है यहां जड़बुद्धी तरीके से किसी भी बात को मान लिए जाने और अंधानुकरण करने पर जोर नहीं है, वरन् अपनी निष्पक्ष और विशुद्ध बुद्धि और चेतना के विकास द्वारा और हर बात के बारे में हर संभावित प्रश्न करने, खोज करने, प्रयोग करने, अनुसंधान करने और अपने द्वारा प्राप्त अनुभव और अनुभूति आधार पर जीवन को देखने, समझने और जीने की स्वतंत्रता और स्वीकृति है।
यह परम वैज्ञानिक, निष्पक्ष और समस्त पूर्वाग्रहों से मुक्त व्यवस्था है, जो विश्व की किसी सभ्यता और संस्कृति में उपलब्ध नहीं है, हमारी संस्कृति और सभ्यता हर तरह से जीवंत, ग्रहणशील और प्रयोगधर्मी है।
यहां समय समय पर नई धाराओं को समाविष्ट करके, पुरानी, रुग्ण, तिथि बाह्य और जड़ बातों को त्याग कर विकास और विचार की नवीनतम धाराओं को अंगीकार किया गया है जिनका आधार सत्य और समस्त का कल्याण रहा है।
हमारी विरासत, अन्य संस्कृतियों की तरह जड़, दुराग्रही और मृत नहीं है जहां सब कुछ हजारों साल पहले निश्चित किया जा चुका है, जिसमें कोई भी बदलाव या संशोधन और नई बात के लिए कोई स्वीकृति नहीं, एक तरह से वे सभी इस अर्थ में मृत संस्कृतियां और जीवन पद्धतियां है।
जहां नवीनता की स्वीकृति और प्रश्न करने, शोध करने और विकसित होने की समस्त संभावनाएं बंद है और रहेगी सदा इसलिए वो आज भी धरती पर सबसे आदिम, बर्बर, असभ्य और अमानवीय जीवन धारणाएं हैं।
जब अन्य सभ्यताएं और संस्कृतिया अपने शैशव काल में थी इस धरती पर जीवन के परम रहस्यों की खोज और उस पर आधारित जीवन व्यवस्था अपने चरम पर थी, यही बात इस धरती को पूरी पृथ्वी की आध्यात्मिक राजधानी और केंद्र के रूप में प्रस्तुत करती है, और यह सदा बना रहेगा जब तक इस धरा पर जीवन रहेगा।
यह मेरी व्यक्तिगत धारणा, खोज और समझ है इस देवभूमि और यहां की आध्यात्मिक विरासत के संबंध में, प्रबुद्ध पाठक इससे सहमत और असहमत होने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन कोई भी धारणा बनाने से पहले सभी तथ्यों की खोज और अनुसंधान के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचे और हम भी अवगत कराए, धन्यवाद।