गुरू को ईश्वर से भी ऊँचा दर्जा क्यों दिया जाता है?
गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:
गुरू को ईश्वर से भी ऊँचा स्थान क्यों दिया जाता है? यह हमारी संस्कृति का मूलमंत्र है, सद्गुरु की कृपा से ही हमे अपने और समस्त के रहस्यों का पता चलता है, वो ही कार्य कारण को समझने की बुद्धि और करने योग्य का विवेक प्रदान करते हैं।
वो ही हमारे जीवन को गौरव और सार्थकता के बोध से भरते हैं, वो ही हमसे हमारा परिचय कराते हैं और हममे स्थित समस्त का भी। सद्गुरु की संगति और कृपा से बड़ा कोई भी आनंद और धन नहीं इस जगत मे, हमारे सारे प्रश्नों के उत्तर और सारी भटकन और प्यास का वो एक मात्र उपाय है।
हमे नहीं पता जीवन क्या है? इस संपूर्ण जगत का, इस पूरे अस्तित्व का रहस्य और प्रयोजन क्या है? हम यहाँ क्यों है? ऐसे हजारों सवालों का जवाब हमे उनकी कृपा और सानिध्य से ही मिलते हैं। हम सभी ने सुना है –
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
गुरु की महिमा अपरम्पार है, यह बात एक आत्मज्ञानी गुरु के लिए कही गयी है, क्यूंकि वो ही इतने समर्थ होते है की जो हजारों जन्मों मे उपलब्ध न हो सके वो पल भर मे आपको प्रदान कर सकते हैं।
मेरे अपने जीवन मे सत्य और प्रेम की सुगंध सदगुरुओं की शिक्षाओं और उनकी अभिव्यक्तियों को जीने और आत्मसात करने से फलित हुई है, मेरे जीवन की समस्त धन्यता उनके आलोक मे विकसित हुई है।
मैंने खुद मे और अपने आसपास के सभी लोगों के मध्य एक गहरा फर्क देखा है सब देखते, सुनते और पढ़ते है लेकिन न कोई उस सम्बन्ध मे कोई खोज करता है, न उसके सम्बन्ध मे कोई प्रयोग करता है न कुछ उन्हें उपलब्ध होता है, इसलिए दुनिया भर का ज्ञान उनके जीवन मे कुछ भी बदलता नहीं है।
सिर्फ सुनिएऔर पढ़िए नहीं, आत्मसात कीजिये जीवन मे उतारिये यहाँ कुछ भी व्यर्थ नहीं है और जीवन सबसे बड़ा गुरु है, और यहाँ सब कुछ मौजूद है जिसकी आपको तलाश है, बस आपको खुद को उन तरंगों से जुड़ने योग्य बनाने की जरुरत है उसका प्रवाह आप मे बहने लगेगा, यह मेरे व्यक्तिगत अनुभव है, बात सिर्फ आपकी तैयारी और पात्रता की है, जो तैयार है और पात्रता विकसित करने मे रूचि रखता है उसे सब यही मिल जाता है।
गुरु कृपा इसे सहज और सरल तरीके से होने मे अत्यंत मददगार होती है, क्या आप अपना कचरा कूड़ा देखने और उसे जलाने के लिए तैयार हैं, क्या आप अपने जीवन के हर तल पर व्यर्थ को त्याग कर सार्थक को अंगीकार करने को तैयार हैं?
मुझे मेरी सारी मूढ़ताओं और मूर्खताओं की श्रंखला का ज्ञान और उससे मुक्ति ही उनकी कृपा और आशीर्वाद से संभव हुआ है, मुझे दूसरों का कुछ भी नहीं पता, लेकिन मुझमे जो भी अच्छा है वो मेरी माँ और मेरे सदगुरुओं का प्रताप है, आशीष है जिन्होंने इस मिटटी के ढेर को अनजानी सुगंध और ऐश्वर्य से भर दिया है। गुरु अनंत, गुरु कथा अनंत, वो इस धरती पर इश्वर का साकार रूप हैं।
इस जीवन मे सार्थक और निरर्थक का बोध, अपनी शक्तियों और क्षमता का ज्ञान, और जीवन को अपने और सभी के लिए उपयोगी, गुणकारी और सार्थक बनाए रखने की युक्ति और बोध भी उन्ही की कृपा से मिला है, वो एक प्रकाश स्तम्भ हैं जिनकी रौशनी मे जीवन की नैया हर तूफ़ान को पार करते हुए निरंतर गतिमान है, एक अनजान लक्ष्य की ओर, आनंद और प्रेम से करुणा और भक्ति से चूर।
कोई भी शब्द सदगुरुओं के सम्बन्ध मे सक्षम नहीं है, इसे गहरी भक्ति और पूर्ण समर्पण से ही पाया जा सकता है, “गुरु ही जीवन है, गौरव है, प्राण है, उनके बिना यह जीवन और जगत एक जलता हुआ श्मशान है?”
हम सभी को हमारे सदगुरुओं को पीने और उसे जीवन मे जीने की ऊर्जा, बुद्धि और शक्ति मिले बस यह प्रार्थना है, ॐ सद्गुरुवे नमः।
यह प्रश्न मेरे ब्लॉग एवं Quora के प्रबुध्द पाठक द्वारा पूछा गया है