आध्यात्मिक साधकों द्वारा केश रखने और न रखने का क्या कारण है?
बुद्ध और जैन धर्म और विश्व के अन्य कई सम्प्रदायों के उपासक और साधक अपने चेहरे और सिर के बाल निकाल लिया करते हैं, क्यूंकि वो अपना समय और श्रम उन्हें सजाने संवारने में व्यर्थ नहीं करना चाहते इस के अलावा साफ सफाई और हाइजिनिक कारणों से भी वो ऐसा करते हैं।
इसके अलावा वो बाहयोपचार और साजसज्जा के प्रति उदासीन रहना चाहते है ताकि वो अपनी ऊर्जा और दृष्टि अंतर्मुखी कर सके, उनके लिए बाह्व शारीरिक और भौतिक सौंदर्य से ज्यादा मूल्यवान उनका अपने आंतरिक सत्य और वास्तव और परम सौंदर्य की खोज होता है, और यह इसमें सहयोगी उपकरण है।
उनकी इस विशिष्ट अवस्था और स्वरूप को धारण करने का उद्देश्य बाहरी जगत और बातों से स्वयं को उदासीन और विमुख रखना होता है और यह उनकी आंतरिक दृष्टि के विकास और साधना मे सहायक होता है।
ऐसा ही सिर और चेहरे के बालों को लम्बा रखने वाले साधकों और उपासकों के संबंध में सत्य है, इसके अलावा खास तौर से यह उपाय व्यक्ति की चेतना के विकास और इन्ट्यूशन के विकास और पूरी तरह क्रियाशील होने के संबंध में आवश्यक न्यूरोलॉजिकल उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है।
यह एक वैज्ञानिक तथ्य है की हमारे शरीर के बाल हमारे न्यूरो ट्रांसमीटर्स का एक्सटेंशन है, आज से 250–300 वर्ष पूर्व विश्व के सभी भागों में पुरुषों द्वारा लंबे बाल और दाढ़ी रखने का चलन था, यह सामान्य जीवन और सभ्यता का लक्षण था।
आप किसी भी पुरानी कथा, ऐतिहासिक कहानी, चलचित्र या टीवी ड्रामा में यह देख सकते हैं की आज से 300 वर्ष पूर्व के समय में विश्व के किसी भी भाग में पुरुषों के द्वारा लम्बे बाल और दाढ़ी रखने का चलन था, चाहे वो सामान्य नागरिक हों या आध्यात्मिक साधक।
यह तो 18 वी शताब्दी की क्रांति और नवजागरण काल के बाद यूरोपीय अमेरिकी सभ्यता संस्कृति के अंधानुकरण, दासता और प्रभाव के चलते पुरुषों में छोटे बाल रखने और दाढ़ी मूंछ सफाचट करने का चलन शुरू हुआ है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था इसके वैज्ञानिक और गुह्य कारण थे।

सिर मूंडना और लंबे दाढ़ी बाल रखना विशिष्ट कार्यों को करने, एकाग्रता और ध्यान विकसित करने, परा शक्तियों से संदेश और संवाद करने, और अदृश्य प्राकृतिक शक्तियों से संबंधित होने में बेहद उपयोगी उपकरण है।
इसके प्रमाण हैं, आप किसी भी धार्मिक या आध्यात्मिक परंपरा के परम पुरुषों को परा शक्तियों से युक्त व्यक्तियों को इन लक्षणों से युक्त देख सकते है।
इस संबंध मै बहुत सारे प्रयोग किए गए हैं एक का उल्लेख कर रहा हूं जिससे आपको यह बात समझने में मदद मिलेगी –
आप में से बहुत सारे लोग अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियंस के बारे में जानते होंगे, वे बेहद लंबे बाल रखते थे और परा शक्तियों और छठी इन्द्रिय या इन्ट्यूशन में बेहद विकसित व प्रवीण थे।
अपने मुक्त प्राकृतिक परिवेश और खुले लंबे बालों की वजह से वे आसानी से खतरों को भांप सकते थे, वो शुद्ध प्रकृति की संतान थे, खुले वन प्रदेशों में रहना और मुक्त जीवन जीना ही उनका जीवन का तरीका था।
कुछ विदेशियों को उनकी इस विशिष्ट क्षमता और प्रतिभा का पता चला तो वो इनकी इस क्षमता का उपयोग सामरिक और गुप्तचर कार्यों के लिए करने के लिए कुछ लोगो को अपने साथ ले गए, उन्होंने इनकी क्षमताओं की जांच भी की उन्होंने पाया की वे लोग अद्भुत रूप से खतरों कों भांपने और उसकी सूचना प्राप्त करने में सक्षम थे।
उन्होंने उन्हें अपनी टुकड़ी में शामिल किया और उनके सैनिक नियमों के अनुसार उनके लंबे संवेदनशील बालों को काट दिया उन्होंने पाया कि, बाल काटने के बाद वो बिलकुल प्रभावहीन और निरूपयोगी साबित हुए, उनके लंबे बाल ही उनके लिए ट्रांस रिसीवर की तरह बाह्य जगत में अदृश्य सूक्ष्म तरंगों को ग्रहण करने का उपकरण थे।
इसी तरह विभिन्न आध्यात्मिक पथों पर साधना रत साधकों और उपासकों को बाह्य जगत से विमुख और अन्तर्जगत के प्रति और अदृश्य आयामों और शक्तियों से जुड़ने की साधना में केंद्रित और प्रबल होने के लिए यह उपक्रम किया जाता रहा है, मनुष्य की चेतना के विकास के प्रारंभ से।
विश्व में विभिन्न साधना पद्धतियों और साधकों द्वारा यह विशिष्ट चिन्ह विशिष्ट उद्देश्यों और शक्तियों के जागरण और विकास के लिए प्रतिष्ठित किए गए हैं, जिनके ज्ञात और अज्ञात वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण और व्यवस्थाएं है।
उम्मीद है यह जानकारी इस संबंध में आपको अपनी समझ बढ़ाने में उपयोगी होगी।
मै आपको अपना स्वयं का अनुभव बताता हूं, पिछले तीन वर्षों तक मैंने अपनी दाढ़ी के बाल काफी लंबे समय तक बढ़ाए रखे और मैंने इसे महसूस किया कि इससे बाहरी लोगों की आपके प्रति धारणा के संबंध में उदासीनता और आंतरिक स्थिरता और मिठास में अभूतपूर्व वृद्धि होती है, यह आंतरिक रूप से केंद्रित और स्थिर होने में सहयोगी है, यदि आप खुद से जुड़ना पसंद करते हों और इस दिशा में क्रियाशील हों तो यह निश्चित रूप से मददगार है।
और तभी से मैं लगातार इसे रखता हूं, जबकि मेरी मां को बिल्कुल भी पसंद नहीं वो कहती है हमारे साथ रहना है तो इसे साफ करो वरना बाबागिरी में लग जाओ और हिमालय चले जाओ हा हा हा इतिहास गवाह है किसी की भी मां और पत्नी को अपने परिवार के किसी पुरुष का सन्यासी होना या गहरी आध्यात्मिक रूचि रखना पसंद नहीं आया है कभी भी और ना होगा कभी, क्यूंकि उन्हें भय लगता है की कहीं वो अपने किसी प्रिय को खो न दें, इसलिए जब घर पर होता हूँ तो सफाचट रहना जरुरी हो जाता है :p
वास्तविकता तो यह है, गहरी आध्यात्मिक रूचि मनुष्य को अपने जीवन और सभी रिश्तों को अधिक सार्थकता और गहराई से और सही स्वरुप में जीने और निभाने में परम सहयोगी है, वह जीवन और रिश्तों के मध्य की व्यर्थता के प्रति सचेत और जागरूक रखती है, रिश्ते अपने सर्वाधिक शुद्ध और प्रमाणिक स्वरुप और प्रभाव में विकसित होते हैं और जीवन को बेहतर बनाए रखने में अत्यंत सहयोगी होते हैं।
गहरी आध्यात्मिक समझ का व्यक्ति जीवन और जगत की सार्थकता और व्यर्थता को बेहतर रूप से जानने और समझने में सक्षम होता है और दूसरों को भी इसमें सहयोग करता है।
मै स्वयं आध्यात्मिक अनुभव और इन्ट्यूशन की वृद्धि में रुचि रखता हूं, बेहद संवेदनशील हूं और इसमें और वृद्धि करना चाहता हूं और यह विशिष्ट चिन्ह और उपयोगी उपकरण है, क्यूंकि यह आपकी ग्रहणशीलता को तीव्र और गहरा करने में बेहद सहयोगी है।
यह स्वयं से जुड़ने में सहयोगी है, और बाह्य आचार और लोगों की धारणा के अनुरूप ढलने की प्रवृत्ति से विमुख करती है, यह आपको अपने मूल स्वभाव की और केन्द्रित होने में सहयोगी है, यही इसका सार्थक उपयोग है, और इसके अन्य वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ तो हैं ही।
इसका यह मतलब नहीं कि सब सिर घुटे और दाढ़ी बाल युक्त लोग साधु या सिद्ध है, यह सिर्फ वास्तविक लोगों के लिए उनकी साधना में उपयोगी है और ढोंगियों और ठगों की उनके प्रपंच और ढोंग को धारण करने और लोगों को मूर्ख बनाने मे।
इसलिए सावधान, हर चमकती हुई चीज़ सोना नहीं होती और हर किस्म के प्रभावी चिन्ह, वेश और स्वरुप धारण करने वाले सभी लोग सही नहीं होते, ठग और धोखेबाज़ भी इनका सबसे ज्यादा फायदा उठाते हैं, जागरूक और चैतन्य रहें, बस यही काम आता है।
धन्यवाद।